Swatantra Bharat Party

गेहूँ के किसानों के हितों पर सरकारी तंत्र का घातक हमला

अनिल घनवट, राष्ट्रीय अध्यक्ष, स्वतंत्र भारत पार्टी

रुस और उक्रैन में जंग शुरु है और इस वजह से दुनिया के कारोबार में काफी उथल पुथल मची है। अनाज, खाने का तेल, डीज़ल, पेट्रोल के साथ कई चीजों के दाम तेजी से बढ़ रहे है। भारत में गेहूँ के जरूरत से ज्यादा भरे पड़े भंडार को लाभकारी ढंग से उपयोग में लाने का अच्छा अवसर है । केंद्र सरकार को गेहूँ पैदा करने वाले किसानों के हित में सोचते हुए उनके गर्दन पे छुरी न चलाते हुए किसानों के लाभ की बात सोचनी चाहिए ।

दुनिया के गेहूँ भंडार पर मंडरा रहा है ख़तरा

दुनिया में निर्यात होनेवाले कुल गेहूँ में से २५% गेहूँ रुस और युक्रेन से आता है। मिश्र में ७४% गेहूँ इन दो देशों में से आता है। रुस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूँ उगाने वाला और निर्यात करने वाला देश है। पहले सरकारी नियंत्रण होने के कारण रुस में ज्यादा गेहूँ नही पैदा होता था। लेकिन रुस के संयुक्त संघ राष्ट्र का विघटन होने के बाद, रुस के किसानों को सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने की, और नई तकनीक इस्तेमाल करने की आज़ादी दे दी गई, जिसके कारण रुस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूँ पैदा करने वाला और निर्यात करने वाला देश बन गया। उस समय रुस को रूबल के गिरे हुए दाम का भी फायदा मिला।

युक्रेन में भी गेहूँ की बड़ी फसल होती है। गेहूँ के निर्यात करने में युक्रेन दुनिया में पाँचवें स्थान पे है।

युक्रेन और रुस के गेहूँ का निर्यात काला समंदर (ब्लैक सी) से होता है। उक्रैन के कृषि उपज और औद्योगिक उत्पादनों का निर्यात, काले समंदर के किनारे बने ओडेसा, खेरसन और मायकोलीव बंदरगाहों पर से होती है। युद्ध में इन बंदरगाहों को बड़ा नुकसान हुआ है और काले समंदर में होने वाली यातायात पुर्ण रूप से बंद है। इसके कारण युक्रेन और रुस से काले समंदर द्वारा होने वाला निर्यात ठप्प हो चुका है।

भारत के किसानों के लिए अवसर

दुनिया की अन्न सुरक्षा के लिए गेहूँ की जरूरत है। ये जरूरत भारत कुछ हद तक पूरी कर सकता है। भारत के पास बड़े पैमाने में गेहूँ के भंडार भरे पड़े है। और कुछ ही दिनों में गेहूँ की नई फसल बाजार में आएगी। अपनी फसल मार्च के आख़िरी से आने की उम्मीद है, रुस और युक्रेन का गेहूँ अगस्त-सितम्बर में तैयार होता है।

भारत के किसानों के लिए यह एक अवसर है। मांग बढ़ने की वजह से दामों में काफी तेजी आई है। पहले गुजरात के कांडला बंदरगाह पर निर्यात करने वाले व्यापारी, बीस हजार रुपये प्रति टन से गेहूँ की ख़रीद करते थे, अब पच्चीस हजार रुपये टन के दाम दे कर खरीद रहे है। इस तेजी का फायदा किसानों को मिलना चाहिए। भारत के पास जो बाकी पड़ा गेहूँ था उसकी रेकॉर्ड निर्यात हो चुका  है जो कि पिछले १४ सालों में रेकॉर्ड निर्यात है। इस साल भारत में गेहूँ की उपज भी रेकार्ड तोड़ने वाली, १११.३ (मिलियन) टन होने की उम्मीद है। भारत अगर बफर स्टॉक के लिए जरूरी इतना गेहूँ रखकर बाकी निर्यात कर देता है तो देश को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा का लाभ मिलेगा. डॉलर के मुकाबले भारत का रुपया कमजोर होने के कारण देश को बहुत फायदा होगा, किसानों को फसल के अच्छे दाम मिलेंगे.

किसानों के रास्ते में सम्भावित बाधाएँ

इस फायदे के सौदे में एक ही दिक्कत है और वो है हमारे देश की व्यापार नीति । गेहूँ के बढ़ते दाम रोकने के लिए सरकार, जब मन में आए जरूरी वस्तु कानून का इस्तेमाल करके गेहूँ के भंडारण पर मर्यादा (सीमा) डाल सकती है या परराष्ट्र व्यापार कानून के तहत निर्यात पर भी पूरी तरह रोक लगा सकती है।

इससे होने वाला नुकसान देश के किसानों को झेलना पड़ेगा, देश की अर्थव्यवस्था को झेलना पड़ेगा।

गेहूँ के उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर हे लेकिन गेहूँ के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ १% ही है। आपने देश में आयात-निर्यात के बारे में कोई दीर्घ-कालीन नीति नहीं है। कभी भी निर्यात-बंदी, या ज्यादा दाम से आयात किए जाने के कारण अंतर राष्ट्रीय बाजार में भारत की छवि खराब हो चुकी है। भारत से व्यापार करने के लिए दूसरे देशों में भारत के प्रति विश्वास पैदा करने के लिए यह अच्छा मौका है। भारत को एक अच्छी कृषि व्यापार नीति की जरूरत है। गेहूँ की निर्यात जारी रख कर हम खोया हुआ विश्वास वापस कर सकते है।

गलती सुधार सकते है

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गेहूँ उत्पादक इलाके के किसानों को इस निर्यात का बड़ा लाभ हो सकता है। लेकिन इन्हीं लोगों ने नये कृषि कानूनों का विरोध करके अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। कृषि कानूनों में कुछ सुधार करके अमल में लाए जाते तो सरकार के हाथों में भंडारण पर रोक सीमा और निर्यात रोकने का अधिकार कम हो जाता।

१९८० के  दशक के अंत में पाकिस्तान में पड़े आकाल के कारण, वहाँ गेहूँ के दाम बहुत बढ़ गए थे। उस समय भारत में गेहूँ की एमएसपी ३१५ रुपये थी और पाकिस्तान में ११०० रुपये के दाम चल रहे थे। अगर हमारे यहाँ मुक्त व्यापार की व्यवस्था होती तो भारत के किसानों को ९०० रुपये तक गेहूँ की कीमत मिल सकती थी। लेकिन गेहूँ के निर्यात पर सरकार ने रोक लगा रखी थी। तब पंजाब हरियाणा के किसानों की मदद  के लिए, किसान नेता शरद जोशीजी के नेतृत्व में महाराष्ट्र से हजारों किसान और शेतकरी संघटन के कार्यकर्ता पंजाब आए थे। पाकिस्तान-भारत की वाघा बॉर्डर पर जा कर पाकिस्तान को गेहूँ भेजने का प्रतीकात्मक आंदोलन किया था। निर्यात नहीं करने देंगे तो लागत-मूल्य के आधार पर कम-से-कम ६१५ रुपये एमएसपी दे दो ऐसी मांग रखी गई थी। “छे सौ पंद्रह  गिनके लेंगे, फिर हमारी कनक (गेहूँ) देंगे”- ऐसा हमारे आंदोलन का नारा था। काफी मंडियों में गेहूँ की खरीद बंद कर दी थी।

दाम गिराने की तैयारी शुरू हो चुकी है, सावधान!

पंजाब हरियाणा के साथ-साथ, आज गेहूँ  उगाने वाले सभी राज्यों के किसानों को आर्थिक लाभ मिलने की परिस्थिति है लेकिन सरकार द्वारा खतरे की घंटी भी बज चुकी है। गेहूँ के दाम में होने वाली बढ़ोतरी रुकने के लिए, आटा-मिल वालों ने शोर मचाना शुरु किया है। गेहूँ के दाम एमएसपी तक ही सिमित रखे जाए, ऐसी उनकी मांग है। महंगाई बढ़ गई तो गरीब क्या खाएंगे ऐसा चिल्लाएंगे, विपक्ष के लोग सैकड़ों पर उतर कर सरकार पर दबाव डालेंगे. वोट खोने के डर से सरकार स्टॉक लिमिट लगा देगी, निर्यात पर भी पाबंदी लगा सकती है। सरकार अगर किसानों का गला काटने के लिए छुरी तेज कर रही है, तो किसानों को भी अपने आंदोलन के लिए तैयार होना चाहिए, नहीं तो गेहूँ के किसानों पर सरकारी डाका पड़ने वाला है – इसमें कोई संदेह नहीं।

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