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जानिए- देश का किसान खूब मेहनत करता है फिर भी आखिर गरीब क्यों है?

This is taken from the Jagaran (20 December 2021).

अनिल घनवट

देश का किसान मेहनत करता है फिर भी गरीब क्यों है? दरअसल स्वतंत्रता के बाद से ही देश में कृषि उत्पादों को कम कीमत पर ही उपलब्ध कराने की नीति रही है। सरकारें बदलती गईं, लेकिन किसानों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ। किसान कर्ज में दबते गए। कृषि उपज की अंतरराज्यीय बिक्री पर रोक लगा दी गई। कीमत और भंडारण से लेकर कई ऐसे कानून बने, जिनसे किसानों के लिए स्थिति जटिल होती गई। मंडी कानून भी किसानों को लूटने का माध्यम बन गया।

नए कृषि कानून इन समस्याओं को हल करने में सक्षम हो सकते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। अब हमें आगे की राह देखनी होगी। हमें समझना होगा कि अब पूरा विश्व एक बाजार होता जा रहा है। किसी भी देश में कहीं से भी अनाज, फल, सब्जी खरीदना-बेचना संभव है। भारत के किसानों को दुनिया के किसानों से मुकाबला करना है तो जो तकनीक, बीज दूसरे देश के किसान इस्तेमाल करते हैं, उनकी उपलब्धता भारत के किसानों तक भी होनी चाहिए।

इसी तरह खेती की जमीन को लेकर लगी कई तरह की पाबंदियां भी खत्म करने की जरूरत है। खेती की जमीनें खरीदने-बेचने के नियमों में बदलाव होना चाहिए, जिससे कृषि अपनाना और छोड़ना, दोनों ही आसान हो सके। इससे कृषि क्षेत्र को आकर्षक बनाना संभव होगा।

एक अनुमान के मुताबिक, देश में फल-सब्जियों का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा खराब हो जाता है। जल्दी खराब होने वाली उपज के भंडारण की सुदृढ़ व्यवस्था नहीं होने से ऐसा होता है। गोदाम और कोल्ड स्टोरेज की विधिवत व्यवस्था नहीं होने के कारण अधिक उत्पादित उपज किसान फेंकने के लिए बाध्य होते हैं। इस संबंध में सही नीति बने तो निवेश की राह भी आसान हो। विदेशी कंपनी के निवेश के साथ ही तकनीक भी आती है। गांवों में पैदा होने वाली उपज का वहीं भंडारण और प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) होने लगे, तो बड़े पैमाने पर वहां रोजगार के अवसर भी बनेंगे। शहरों की ओर युवाओं का पलायन भी कम होगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली-पानी की सुदृढ़ व्यवस्था और अच्छी सड़कें भी बहुत जरूरी हैं। इससे बाजार तक किसानों की पहुंच सुगम होती है। इससे उन्हें उत्पादों की सही कीमत मिल पाती है। इन सब मसलों पर कदम उठाए जाएं तो कुछ ही साल में कृषि का नक्शा बदल सकता है। अन्नदाता खुशहाल हो सकते हैं।

[अध्यक्ष-शेतकारी संगठन]

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